कोरोना की अफवाह के चलते थोक में 30 रुपए में बिक रहा मुर्गा, माइक्रोबायोलॉजिस्ट बोले- कैरी नहीं करता वायरस
लखनऊ। अचानक से आवाज आई, कौव्वा कान ले गया और सभी कौव्वे के पीछे भाग खड़े हुए. कान तो किसी ने देखा ही नहीं. अफवाह को लेकर ये कहावत गांव-गांव में कही जाती है. कोरोना वायरस का चिकन से नाता भी इसी अफवाह का हिस्सा है. किसी ने उड़ा दिया और लोगों ने चिकन खाना छोड़ना शुरू कर दिया. हालात ये हो गये हैं कि चिकन कारोबार घुटने के बल बैठ गया है.
प्रदेश के ज्यादातर पोल्ट्री कारोबारी बर्बादी की कगार पर पहुंच रहे हैं. वजह है कोरोना वायरस के चिकन से फैलने की अफवाह. इस अफवाह की वजह से बाजार में चिकन की मांग बेहद गिर गई है. पोल्ट्री फॉर्म कारोबारी से लेकर आढ़ती और फिर होटल संचालक, सभी के सभी परेशान हैं कि आखिर लोगों का चिकन से मोहभंग क्यों हो गया है?
पोल्ट्री फॉर्म वाले थोक के भाव में पहले जिंदा मुर्गा 90 से 100 रूपये किलो तक बेचते थे लेकिन अब जो बच गया है उसे खपाने के लिए 30 या 40 रूपये के भाव से बेचने को मजबूर हैं. अयोध्या में बड़ी पोल्ट्री फॉर्म चलाने वाले सत्येन्द्र सिंह बताते हैं कि जो मुर्गे बचे हैं, उन्हें बेचने के बाद चूजों की दूसरी खेप लाने की हिम्मत नहीं पड़ रही है. दूसरी ओर लखनऊ शहर में थोक के भाव से मुर्गा बेचने वाले जीशान बताते हैं कि पहले मुर्गे का गोश्त 150 से 160 रूपये किलो बिकता था लेकिन, अब 70 से 80 रूपये में बेचना पड़ रहा है।
वहीं आज़मगढ़ दो प्याजा होटल चलाने वाले बबलू राय बताते हैं कि वे हर रोज मटन और मछली के साथ 15 किलो चिकन भी बनाते थे लेकिन, अब 1 या 2 किलो बनाते हैं जिससे कोई मांग दे तो उसे मिल जाये. तीनों स्तरों पर चिकेन के कारोबार को इस अफवाह से जबरदस्त डेंट लगा है.
कोई नाता नहीं है चिकन और कोरोना वायरस का
लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई में माइक्रोबायोलॉजी विभाग की हेड डॉ. उज्जवला घोषाल ने बताया कि दोनों के बीच कोई संबंध नहीं है. ये सिर्फ अफवाह है. मुर्गा किसी भी सूरत में कोरोना वायरस को कैरी नहीं करता है. इसके खाने से किसी को भी इसके संक्रमण का कोई खतरा नहीं है.